Subharti Law College: स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के सरदार पटेल सुभारती लॉ कॉलेज एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार कमीशन नई दिल्लीके संयुक्त तत्वावधान में मानव अधिकारों एवं महिला-अधिकारों के विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सुभारती लॉ कॉलेज के निदेशक श्री राजेश चंद्र (पूर्व न्यायमूर्ति, प्रयागराज उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश) के दिशा निर्देशन में तथा सुभारती लॉ कॉलेज के डीन प्रोफेसर डॉ. वैभव गोयल भारतीय के मार्गदर्शन में किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ भारतीय विधि संस्थान नई दिल्ली के निदेशक प्रो.डॉ मनोज कुमार सिन्हा, डिप्टी कमांडेंट आरएएफ एकेडमी फॉर पब्लिक ऑर्डर मेरठ श्री नीरज कुमार झा, सुभारती विश्वविद्यालय के कार्यकारी कुलपति डा. अभय शंकरगौड़ा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. शल्या राज, सुभारती लॉ कॉलेज के निदेशक एवं न्यायमूर्ति राजेश चंद्रा, सुभारती लॉ कॉलेज के डीन प्रो.डॉ.वैभव गोयल भारतीय ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस दौरान विद्यार्थियों द्वारा माँ शारदे की वंदना प्रस्तुत की गई। सभी अतिथियों का स्वागत पौधा भेंट कर किया गया।
विद्यार्थियों को तथा समाज को शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान
कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रो. डॉ- रीना बिश्नोई, द्वारा उपस्थित श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत की गई। उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय में स्थापित आंतरिक शिकायत प्रकोष्ठ विश्वविद्यालय में कार्यरत महिलाओं एवं विद्यार्थियों के सुरक्षा हेतु तथा उनके यौन-उत्पीड़न के खिलाफ एक सुरक्षित वातावरण और यौन-उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण और लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट एक्ट 2013 एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (उच्च शिक्षा संस्थानों में महिला कर्मचारियों और छात्रों के यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण) विनियम 2015 के नियम 4 के अनुसार, लोकाचार को ध्यान में रखते हुए और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के विषय पर गठित किया गया है। यह समिति समय समय पर लैगिंग समानता शिक्षा एवं जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर महिला कर्मचारियों व विद्यार्थियों को तथा समाज को शिक्षित करने का कार्य करती है।
प्रो.डॉ मनोज कुमार सिन्हा ने मानवाधिकार (संरक्षण) अधिनियम के विषय में बताया
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता भारतीय विधि संस्थान नई दिल्ली के निदेशक प्रो.डॉ मनोज कुमार सिन्हा ने मानवाधिकार (संरक्षण) अधिनियम 1993 के विषय में बताते हुए कहा कि इस अधिनियम की धारा 2 (द) ह्यूमन राइट की परिभाषा बताती है, साथ ही साथ धारा 2 (फ) इस अधिनियम सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार देता है कि आवश्यकता होने/न्याय देने के लिए मानवाधिकारों की व्याख्या वृहद रूप में कर सकता है। उन्होंने आगे कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने समय समय पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करके विभिन्न वादों में ना केवल भारतीय नागरिक वरन् विदेशी नागरिकों के मानव अधिकारों को संरक्षित करने का कार्य किया है। उदाहरण के लिए उन्होंने गीता बनाम हरिराम, विशाखा केस और रेलवे बोर्ड बनाम चन्द्रिमा दास के केस में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय के विषय में बताया। प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है कि वह व्यक्तिगत तथा दूसरों के साथ में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकार तथा मूलभूत स्वतंत्रता के संरक्षण व अनुभूति के लिए प्रोत्साहित व संघर्ष कर सकता है। वहीं दूसरी ओर यह राज्यों की मूलभूत जिम्मेदारी व कर्तव्य है कि वे समस्त मानव अधिकारों व मूलभूत स्वतंत्रता को लागू करेंगे, साथ ही ऐसे कदम उठाएंगे जोकि ऐसी स्थिति को बनाए जो सामाजिक आर्थिक राजनीतिक तथा अन्य क्षेत्रों में कारगर हो साथ ही वे समस्त कानूनी शर्तें जो यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि सभी व्यक्ति अपने राज्य क्षेत्र में व्यक्तिगत तथा दूसरों के साथ सामूहिक रूप से सभी अधिकारों को स्वतंत्रता से उपयोग करने के अधिकारी हैं। इसके अतिरिक्त घरेलू कानून जो मानवाधिकार तथा मूलभूत स्वतंत्रता के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के शासन पत्र तथा अन्य राज्य की अंतरराष्ट्रीय औपचारिकताओं के अनुरूप हैं, एक ऐसा न्याय ढांचा बनाएंगे जिसके द्वारा मानवाधिकार तथा मूलभूत स्वतंत्रता को संरक्षित किया जा सके। इसी अधिनियम की धारा 3 राज्यों को मानवाधिकार कमीशन बनाने की शक्ति प्रदान करता है, जिसका अध्यक्ष देश के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति होंगे लेकिन 2019 में इस अधिनियम में संशोधन के द्वारा एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य कर दिया गया है। अंत में उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि आपको संविधान के भाग 3,4 एवं 4 (अ) का ज्ञान होना अति आवश्यक है।
उप कमांडेंट आरएएफ अकादमी मेरठ नीरज कुमार झा ने भारत में मानवाधिकार संस्थान किस प्रकार मानव अधिकारों का संरक्षण कर रहे हैं उनकी भूमिका के विषय में बताते हुए 15 दिसम्बर 2019 के एक बहुचर्चित विवाद (जोकि नागरिकता संशोधन अधिनियम 1955 पर आधारित था) कि किस प्रकार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग संविधान द्वारा दिये गए मानवाधिकारों जैसे – जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि की रक्षा करता है और उनके प्रहरी के रूप में कार्य करता है। इसके बाद उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि आपका जागरूक होना यह बताता है कि आप किस प्रकार अपने मानवाधिकारों का संरक्षण कर सकते है।
कुछ ऐसा रहा न्यायमूर्ति राजेश चंद्रा जी का वक्तव्य
न्यायमूर्ति राजेश चंद्रा जी अपने वक्तव्य में बताया कि किस प्रकार देश के उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय मानवाधिकार की अगुवाई करते है। उन्होंने कहा कि सबसे पहली बार हंसा मेहता ने 1946 में अखिल भारतीय सम्मेलन में भारतीय महिलाओं के अधिकार चार्टर की अगुवाई जिसमें लैगिक समानता के साथ भारत में महिलाओं के सिविल अधिकारों व उनके लिए न्याय की माँग की थी। इसके बाद उन्होंने आदिवासी महिलाओं को अन्य सामान्य महिलाओं के समान पैतृक सम्पत्ति में अधिकार प्रदान किये जाने के विषय में बताया। इसके बाद उन्होंने सबरीमाला केस द्वारा महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिये जाने तथा तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विषय में बताते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक को अवैध घोषित कर दिया गया। अपनी बात को उन्होंने “मुझे तलाक को दिया है बड़े कहर के साथ, मेरा शबाब भी लौटा दो मेरे मेहर के साथ” समाप्त किया।
सुभारती विश्वविद्यालय के कार्यकारी कुलपति डा. अभय शंकरगौड़ा ने अपने वक्तव्य में महिलाओं को सुपरह्यूमन बताते हुए कहा कि महिलाएं पुरूषों से ज्यादा शक्तिशाली मानसिक एवं शारीरिक दोनो स्तर पर होती है, क्योंकि वो एक समय में कई सारी भूमिका कई साथ निभाती है।
सुभारती विश्वविद्यालय की मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रोफेसर डॉ. शल्या राज ने अपने उद्बोधन में कहा कि यदि महिलाओं को सशक्त करना है तो इसकी शुरुआत उन्हें अपने घर से करनी होगी। इसके अतिरिक्त उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि आप विधि के विद्यार्थी है और आपको हमेशा इस बात का ध्यान रखना है कि यदि कोई व्यक्ति आपके पास न्याय की अभिलाषा लेकर आया है, परन्तु वह निर्धन है तो उसकी सहायता अवश्य करें। साथ ही उन्होंने महिलाओं से अनुरोध किया कि अपने बच्चों को अच्छे वातावरण में पढ़ाये ताकि वे एक अच्छे नागरिक बन सकें।
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सुभारती लॉ कॉलेज के डीन प्रोफेसर डॉ. वैभव गोयल भारतीय ने उपस्थित अतिथियों, सुभारती विश्वविद्यालय के प्रबन्धन तंत्र, कार्यकारी कुलपति, मुख्य कार्यकारी अधिकारी विश्वविद्यालय के अन्य महाविद्यालयों के डीन/प्रधानाचार्य आदि का धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि 1215 का चार्टर मानवाधिकारों का मैग्नाकार्टा कहलाता है। जिसके द्वारा यह स्थापित किया गया कि राजा को भी इस मैग्नाकार्टा द्वारा शासित माना गया। इसके बाद उन्होंने 1689, 1789, 1889, में मानवाधिकारों से संबंधित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के विषय में बताते हुए कहा कि सन् 1941 में श्रीमती रूजवेल्ट द्वारा मानवाधिकारों की पैरवी करने के विषय में बताया। इसके अतिरिक्त सन् 1948 की सर्व राष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणा पत्र के विषय में बताते हुए उन्होंने कहा कि सदियों से दुनियाभर में पितृसत्तात्मक समाज ने पुरूषों को यह विश्वास दिलाया है कि वे विशेष है और इस लिंग आधारित असमानता को दूर करने के लिए समय समय पर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सन 1979 से कन्वेंशन ऑन दी एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्मस ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमेन (CEDAW) को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था। इसके बाद उन्होंने सन् 1966 की दो संधियों इंटरनेशनल कावेनेन्ट ऑन सिविल एण्ड पॉलिटिकल राइटस और इंटरनेशनल कावेनेन्ट ऑन इकॉनामिक, सोशल एण्ड कल्चरल राइट्स के विषय में बताते हुए कहा कि ये दोनो ही जीवन के अधिकार, बोलने के अधिकार, धर्म और मत के अधिकार, भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आश्रय आदि के विषय में बात करते है।
इण्डियन सोसायटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ नई दिल्ली के उपनिदेशक डॉ विनय कुमार सिंह ने महिलाओं के प्रजनन अधिकार एवं मानसिक स्वास्थ्य के विषय में बताते हुए कहा कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर समिति कंवेशन ऑफ द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वीमेन एवं आई.सी.सी.पी.आर की धारा 6 ने यह स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि महिलाओं के स्वास्थ्य के अधिकार में उनके यौन और प्रजनन अधिकार शामिल है। इसका सीधा अर्थ यह है कि राज्यों के पास महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित अधिकारों का सम्मान, संरक्षण और पूरा करने की जिम्मेदारियां हैं।
कार्यक्रम की संयोजिका आफरीन अल्मास ने बताया कि चार तकनीकी सत्रों का आयोजन प्रो. डॉ. मनोज सिन्हा और डॉ सारिका त्यागी, प्रो. डॉ. अंजलि खरे और प्रो. डॉ. सरताज अहमद, श्री नीरज झा और प्रो. डॉ. रीना बिश्नोई, प्रो. डॉ. विनय सिंह और प्रो. डॉ. वैभव गोयल भारतीय की अध्यक्षता में किया गया जिसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों द्वारा 20 से ज्यादा शोधपत्र एवं आलेख प्रस्तुत किये गये तथा इस एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में 455 से ज्यादा विद्यार्थियों, शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया।
मंच का संचालन भाविनी कौशल्या एवम् सृष्टि भारद्वाज ने किया।
कार्यक्रम में प्रो. डॉ. संदीप चौधरी, प्रो. डॉ. जैसमीन आनन्दाबेन, प्रो. डॉ. लुभान सिंह, प्रो. डॉ. एससी थलेड़ी, प्रो. डॉ. आर.के.घई, डॉ. प्रेम चन्द्र, विकास त्यागी, एना सिसौदिया, अजयराज सिंह एवम् मयंक शर्मा आदि शिक्षक शिक्षिकाएं उपस्थित रहें।
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