DU: कुलपति ने बताया क्या हैं फूलों के कारोबार में करियर की संभावनाएं

DU: दिल्ली विश्वविद्यालय में हाल ही में 65वीं वार्षिक पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन किया गया | डीयू के गौतम बुद्ध शताब्दी उद्यान में आयोजित इस पुष्पोत्सव में विश्वविद्यालय से जुड़े अनेक कॉलेजों ने हिस्सा लिया। प्रदर्शनी का शीर्षक “पुष्पोत्सव 2023: दिल्ली विश्वविद्यालय के खिलखिलाते सौ वर्ष” रखा गया था। इस दौरान सबसे अच्छे प्रदर्शन के लिए इस वर्ष शताब्दी कप मिरांडा हाउस कॉलेज को दिया गया। समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे डीडीएमसी के उपाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि समर्पण और निस्वार्थ भाव लोगों को खुशी देने का संदेश हमें फूलों से ही मिलता है। समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि आज के समय में फूलों के कारोबार में भी करियर की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए छात्रों को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए |

फूलों से मिलती है अपार ख़ुशी

मुख्यातिथि सतीश उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि फूलों के संपर्क में आने से अपार खुशी मिलती है। उन्होने कहा कि पूजा-अर्चना से लेकर सामाजिक समारोहों तक हर जगह फूलों की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। साहित्य के माध्यम से हमें फूलों को लेकर बहुत से संदेश मिलते हैं। उन्होने बताया कि हमारे देश में ट्यूलिप को विदेशों से मंगवाना पड़ता है। इन्हें लाना आसान नहीं होता। अब हम कोशिश कर रहे हैं कि एक बार आए ट्यूलिप के फूलों को अगले साल दुबारा प्रयोग प्रयोग लिए उन्हें संरक्षित किया जा सके। शायद कश्मीर में इसके अनुकूल संभावनाएं हो सकती है। अगर यह संभव हुआ तो 35-40 रुपए में आए एक ट्यूलिप बल्ब को मात्र दो रुपए में संरक्षित किया जा सकेगा। इस अवसर पर उन्होंने कुलपति प्रो. योगेश सिंह के नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय में हो रहे अच्छे कामों को लेकर कुलपति और उनकी पूरी टीम को बधाई दी।

महज एक गाँव से 40 करोड़ रूपए का कारोबार

समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने हिमाचल के चायल के एक गांव मगो का उल्लेख करते हुए बताया कि 1998 में उस गांव में एक शख्स द्वारा फूलों की खेती शुरू की गई और आज वहां से करीब 40 करोड़ रुपए का फूलों का कारोबार होता है। उन्होने बताया कि विश्व में फूलों की मांग 90 हजार करोड़ रुपए की है जिसमें भारत का हिस्सा कुल एक प्रतिशत का है। इतने बड़े वैश्विक बाज़ार में हम अपनी हिस्सेदारी और बढ़ा सकते हैं। परंपरागत खेती के साथ फूलों की खेती अपनाने से अच्छा भविष्य बन सकता है। उन्होने बताया कि डीयू आगे से ऐसी व्यवस्था कर रहा है कि सज्जा के लिए फूलों को कम से कम तोड़ा जाए। अगर सज्जा करनी है तो गमलों से की जाए ताकि उन्हें वापिस सुरक्षित रखा जा सके और फूलों को कोई नुकसान न हो। कुलपति ने अपने संबोधन के अंत में प्रदर्शनी के सफल आयोजन के लिए उद्यान कमेटी सहित सभी मालियों, प्रतिभागी कॉलेजों और उद्यानिकी विभाग को बधाई दी।

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