Morita Therapy: कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों में बदलाव लाना चाहते हैं। लेकिन उनमें बदलाव लाने से पहले यह देखना जरूरी होता है कि अगर उससे संबंधित कुछ ऐसा है जो हमें खुद में बदलने की जरूरत है। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो काफी शर्मीले होते हैं और समूह में बात करने में संकोच करते हैं। यदि आपका बच्चा भी ऐसा है तो हम आपको इसके बारे में जानकारी देंगे। जिसके जरिए आप बच्चे की ओवरऑल परफॉर्मेंस को सुधार सकते हैं। लेकिन सबसे पहले यह जानना होगा कि शर्मिला होना क्या होता है।
शर्मीले होना क्या होता है
शर्मीलेपन का मतलब होता है दूसरों के साथ बात करने, जुड़ने, हिचक और डर है। ईस्टर्न कल्चर में शर्मिला होना बुरा नहीं माना जाता और शास्त्रों में भी इसे स्त्री का एक आभूषण बताया गया है।
शर्मिला होना और शर्म महसूस करना दोनों अलग बातें
ऐसा बताया जाता है कि शर्म मनुष्य की आत्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है। लेकिन आधुनिक युग में शर्मिलापन मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। शर्मिला होना कोई चिंता की बात नहीं है। यह एक ऐसा गुण है जो इंसान होने का एक हिस्सा बना है। साधारण तौर पर शर्मिला होने की समस्या तब बन जाती है जब वह सोशल फोबिया और सोशल एंजायटी डिसऑर्डर का रूप ले लेती है।
शर्मीलेपन की समस्या
जब कोई बच्चा फोन पर बात करने में डरा होता है या फिर उसे अपने आसपास की दुकान से सामान लेने में भी सहजता महसूस नहीं होती तब शर्मिलापन एक समस्या बन जाती है। इसके अलावा शारीरिक लक्षणों में भी अत्यधिक पसीना आना, शर्माना या फिर कांपना शामिल हो सकता है और ऐसी स्थिति में ये बच्चे के करियर और उन्नति में भी बाधा डाल सकता है।
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मोरिटा थेरेपी से दूर होगी शर्मीलेपन की समस्या
1- जापानी मनोचिकित्सक शोमा मोरिटा के नाम पर चिकित्सा का यह तरीका इस धारणा पर आधारित है कि सभी भावनाएं हमारे जीवन का हिस्सा होती है। मोरिटा तकनीक जैन बौद्ध ध्यान के समान है जहां एक व्यक्ति श्वास पर ध्यान केंद्रित करता है। जब हमारे विचार उठते हैं तो उन्हें स्वीकार किया जाता हैं, फिर सांस पर ध्यान दिया जाता है। मोरिटा थेरेपी में ध्यान सामाजिक संपर्क पर होता है, यानी सबसे पहले डर को स्वीकार किया जाता है फिर सामाजिकरण में भाग लिया जाता है।
2- मोरिटा थेरेपी के अनुसार जब कोई बच्चा परिवार के सदस्यों के साथ एक कमरे में बैठता है तो वह सहथ महसूस करता है क्योंकि वह सभी को जानता है और परिवार के सदस्य भी उसको जानते हैं। परिवार के सदस्यों के साथ बैठने पर बच्चा शर्म महसूस नहीं करता। क्योंकि सभी उसके सामान्य व्यवहार को जानते हैं। लेकिन जहां बच्चा अजनबी लोगों के साथ एक कमरे में बैठता है तो वह वहां हिचकिचाने और शर्माने लगता है। मोरिटा थेरेपी के अंतर्गत देखा जाए तो उस शर्मीलेपन का मूल कारण है कि बच्चा अपना फोकस कहां रखता है।
3- यदि बच्चे का फोकस अपने आप पर है तो वह काफी आत्मा जागरूक होगा और वह यही सोचेगा कि उसकी प्रतिक्रिया से सामने वाले सदस्य क्या सोचेंगे। लेकिन यदि बच्चे का फोकस अपनी ओर ना होकर दूसरी चीजों पर या अन्य व्यक्तियों पर होता है तो वह अपनी शर्मीलेपन की समस्या को खत्म कर सकता है। इसलिए जरूरी है कि अब बच्चों को दूसरे व्यक्तियों और बच्चों के साथ आनंद लेना सीखना चाहिए। जैसे खेलों में भाग लेना और उनको प्रोत्साहित करना। इसके अलावा बच्चे को दूसरे लोगों के लिए की गई प्रतिक्रियाओं के लिए कम सेंसेटिव बनाना होगा। जिससे बच्चे के साथ कोई हंसी मजाक भी किया जाए तो उसके आत्मविश्वास में कमी ना आए।
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