Zero Hour: संसदीय भाषा में शून्यकाल किसे कहा जाता है, इसकी शुरूवात कैसे हुई?

Zero Hour: संसदीय न्यूज या संसदीय भाषा में एक शब्द शून्यकाल का बार-बार जिक्र होता है। इस शब्द को (Zero Hour) भी कहा जाता है। इस शब्द का अपना एक इतिहास है। जीरो घंटा यानि शून्यकाल तब होता है जब सांसद तत्तकाल सार्वजनिक महत्व के मुद्दे उठा सकते हैं। शून्यकाल के दौरान मामलों को उठाने से पहले सभापति को नोटिस देना होता है जिसमें जिस मुद्दे को आप उठा रहे हों उसका महत्व और उसके बारे में लिखा होना चाहिए। सांसदों को बैठक के दिन सुबह 10 बजे से पहले अध्यक्ष लोक सभा राज्यसभा के सभापति किसी सदस्य को महत्व का मामला उठाने की अनुमति दे सकते हैं। आइए शून्यकाल के विषय में और थोड़ा समझते हैं।

शून्यकाल ही क्यों कहा जाता है

इस शब्द शून्य काल का अर्थ होता है ‘निर्णय का क्षण’ इसके अलावा संसदीय भाषा में यह प्रश्नकाल के अंत और नियमित कार्य की शुरूवात के बीच का समय अंतराल है। इसका नामकरण करने के पीछे दूसरा तर्क यह है कि यह दोपहर 12 बजे शुरू होता है।

इसकी शुरूवात कब हुई थी।

•यह बात साठ के दशक की है जब संसद सदस्य प्रश्नकाल के बाद राषट्रीय और वैश्विक आयात के कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाते थे।
•एक सदस्य ने संसद के सत्र के दौरान संसद के बाहर मंत्रियों द्वारा की गई घाषणाओं के बारे में एक मुद्दा उठाया।
•इस अधिनयम के अन्य सदस्यों के बीच एक विचार पैदा किया उन्होंने सदन में महत्वपूर्ण मामलो पर चर्चा के लिए एक प्रावधान की मांग की।
•लोकसभा के नौवें अध्यक्ष रबी रे ने सदन की कार्यवाही में कुछ बदलाव किए ताकि सदस्यों के लिए तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों को उठाने के अधिक अवसर पैदा हो सकें।
•उन्होंने शून्यकाल के दौरान कार्यवाही को विनियमित करने, मामलों को अधिक व्यवस्थित तरीके से उठाने और सदन के समय को अनुकूलित करने के लिए एक तंत्र का प्रस्ताव रखा।
•राज्य सभा के लिए दिन की शुरूवात शून्यकाल से होती है न कि प्रश्नकाल से होती है जैसा कि लोक सभा के लिए होता है।

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