World Thalassemia Day: इंसान के लिए कितना ख़तरनाक है थैलेसीमिया, क्या हैं इसने बचने के उपाय

World Thalassemia Day

World Thalassemia Day:थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या आज दुनिया भर में करोड़ों से ज्यादा है। और दुख की बाय है कि यह संख्या घटने की जगह लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसी बिमारी से लोगों को जागरूक करने के लिए आज ही दिन 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है। इस बिमारी का पहला मामला भारत में 1938 में आया था। इस बिमारी से मरीजों की बढ़ती संख्या को देख थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन ने आठ मई को विश्व थैलेसीमिया डे मनाया था।

क्या होता है थैलेसीमिया

थैलेसीमिया एक क्रोनिक ब्लड डिसआर्डर है। इसके कारण रोगी के शरीर में लाल रक्त कण आरबीसी में पूरी तरह से हीमोदग्लोबिन नहीं बन पाता है। इसके कारण एनीमिया हो जाता है और मरीजों को ज़िंदा रखने के लिए हर दो से तीन हफ्ते बाद ख़ून चढ़ाने की आवाश्यकता होती है।

इस बिमारी की तीन स्टेज है

माइनर- यह बिमारी ज्यादातर जन्मजात होती है। इसमें एक जीन मां और दूसरा पिता से मिलता है। किसी एक जीन में अगर थैलेसीमिया होता है तो बहुत ज्यादा ख़तरा नहीं होता है। उसके बहुत हल्का फुल्का एनीमिया होता है। इसके अलावा इंटर मीडिया एक स्टेज होती है। इसमें बहुत हल्के से बहुत गम्भीर लक्ष्ण तक पाये जाते हैं।

मेजर- यह थैलेसीमिया की सबसे ख़तरनाक स्टेज है। यह स्टेज तब आती है जब एक बच्चे को मां बाप दोनों से ही ये जीन मिलते हैं। इस स्टेज में थैलेसीमिया से ग्रस्त बच्चे में पैदा होने के कुछ सालों तक गम्भीर लक्षण दिखते हैं। उन्हें ज़िंदा रखने के लिए अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण मतलब बोन मैरो ट्रांसप्लांट या नियमित रूप से रक्त चढ़ाए जाने की आवश्यकता होती है।

इसके लक्षण-


एनीमिया कमजोर हड्डियां
बहुत शारीरिक विकास
शरीर में लौह की अधिकता
अपर्याप्त भूख- पीली त्वचा
बढ़ा हुआ प्लीहा या यकृत

कई बार थैलेसीमिया रोगियों में हैपेटाइटिस या फिर एचआईवी भी मिलता है। यह ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से भी हो सकता है।

बचाव में आता है कितना खर्च

इस बिमारी का इलाज तो है लेकिन उसका खर्चा बहुत आता है। राष्ट्रीय स्वास्थय मिशन की एक रिपोर्ट बताती है कि थैलेसीमिया से ग्रस्त बच्चा अगर 30 किलो का है तो उसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन और आयरन के लिए सालाना दो लाख रुपये खर्च करने होते हैं। इस 50 साल में करीब एक करोड़ का खर्चा आता है। कुछ विशेषज्ञ बताते हैं कि अच्छे खाने से व्यायाम से और गर्भवती मां के सही समय पर लगने वाले टीके से इस से बचा जा सकता है। इसके आलावा आयरन की कमी को बैलेंस करने के लिए भी कुछ दवाएं आती हैं। डॉक्टर से सलाह के बिना बाद जिन्हें लिया जा सकता है।

इसे भी पढ़ेंः TOP Mechanical Institutes of India:12वीं बाद मेकेनिकल इंजीनियरिंग में चाहते हैं अपना कैरियर,देखें टॉप संस्थानों की सूची

एजुकेशन की तमाम खबरों के लिए हमारे  YouTube Channel ‘DNP EDUCATION’ को अभी subscribe करें

Exit mobile version