टीनऐज बच्चों के व्यवहार के बारे में अनुमान लगाना काफी मुश्किल हो जाता है। किशोरावस्था में उनका स्वभाव कम विकसित होता है। किशोरावस्था एक ऐसी उम्र होती है जब बच्चे अपने बचपन से युवावस्था की ओर बढ़ते हैं। अपनी जीवनशैली और सोच से लेकर उनके शरीर में भी कई तरह के हार्मोनल बदलाव देखने को मिलते हैं। इस उम्र में पढ़ाई, दोस्ती, परिवार सभी की भूमिका अलग हो जाती हैं। लेकिन देखा जाता है कि इस उम्र के बच्चों के अभिभावक बच्चों में गुस्से की प्रवृत्ति को समझ नहीं पाते। आइए विशेषज्ञ से जानते हैं कि कैसे किशोरावस्था के समय बच्चे को गुस्से को समझा जा सकता है और उसे कंट्रोल किया जा सकता है।
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ विधि लिपनिया का कहना है कि किशोरावस्था में बच्चों के हार्मोन चेंज होते हैं और इस उम्र में बच्चे काफी गुस्सा करने लगते हैं। घर के लोग भी उनको बच्चों में नहीं गिनते। ऐसे में किशोरावस्था में बच्चों के सामने अपने व्यक्तित्व को लेकर नाराजगी और चिड़चिड़ापन एक वजह बन जाती है।
माहौल को समझने की कोशिश करें
डॉ विधि कहती है कि अगर आपके टीनएज बच्चे में कोई ऐसा बदलाव आने लगता है जिसमें वह किसी बात को लेकर ज्यादा गुस्सा करते हैं तो सबसे पहले आसपास के माहौल को समझने की कोशिश करें। ऐसी स्थिति में माता-पिता को उनसे सावधानी पूर्वक सुलह करनी होगी।
अपने बच्चों की बात सुने
अगर आपका बच्चा किशोरावस्था के समय कहीं खोया रहता है और बात कम करता है तो उसकी बातें सुनने के लिए थोड़ा सा समय निकाले। आपको उसकी समस्या और गुस्से को ट्रिगर करने वाली बातों को जानना होगा। उसको भरोसा दिलाना होगा कि जब वह चाहे आपसे बात कर सकता हैं। इससे बच्चों को आपसे बातें शेयर करने में भी मदद मिलेगी और गुस्से को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
हर वक्त ना रखें निगरानी
यदि आप अपने बच्चे के हर काम में रोका-टोकी करते हैं या हर बात में उनको सलाह देते है तो ऐसा करना कम करें। बच्चे के डिसीजन में भी उसका साथ दें और हर वक्त उन पर निगरानी ना रखें।
बच्चों की मदद करें
बच्चों को सामाजिक व्यवहार से जुड़े विषयों की किताबें सामाजिक उद्देश्यों पर बनी फिल्में चुनने में उनकी मदद करें। लेकिन उन पर अपनी पसंद की चीजें ना थोपे। अगर बच्चा अपनी पसंद की बुक पढ़ना चाहता है तो पहले उसका कंटेंट भी जरूर समझे।
माता-पिता होते हैं जिम्मेदार
किशोरावस्था में बच्चों की पेरेंटिंग कैसी है उससे भी बच्चे का नेचर डिसाइड होता है। यदि पेरेंट्स बच्चों के साथ दोस्ताना संबंध रखते हैं तो बच्चों में एंगर मैनेज करना आसान हो जाता हैं। इसके अलावा इस उम्र में बच्चों के दोस्त से लेकर सोशल मीडिया पर क्या देखते हैं और उनके आदर्श कैसे लोग हैं और वह किस तरह की फिल्में पसंद करते हैं, इन सब सवालों के जवाब भी बच्चों के माता-पिता के लिए जानना जरूरी होता है। एक तरह से माता-पिता पर इन सब की जिम्मेदारी आ जाती है।