SANDA: सांडे का तेल पुरानी दिल्ली छोटे कस्बे बड़े महानगरों में सड़कों पर लोग बेचते मिल जायेंगे। इस तेले के बारे में वो लंबे-लंबे कसीदे पढेंगे। इसको हासिल करने की बड़ी-बडी साहसिक कहानी सुनाते हैं. इस तेल के इस्तेमाल पर बड़े बड़े दावे करते हैं। इन दावों में कितनी सच्चाई है। इस सांडे के तेल पर थोड़ी सी जानकारी लेते हैं।
सांडा क्या होता है?
सांडा दरअसल एक छिपकली को कहते हैं। इसके दोनों पैरों में दो वसा की थैली होती हैं जिसे इसके पेट में चीरा वगा के निकाला जाता है। वसा को पिघलाकर तेल निकाला जाता है जिसे हम सांडे के तेल कहते हैं। एक सांडे से लगभग 4 ML तेल मिलता है यानी चार या पांच बूंद। ऐसा माना जाता है कि 100 एमएल तेल निकालने के लिए 25 सांडों की जरूरत पड़ती है। एक बार में कम से कम 8 से 10 बूंदे इसकी इस्तेमाल में होती है। यानी दो सांडों खून।
एक चिपकली होती है
सांडा दरअसल एक छिपकली का नाम है। यह छिपकली सरीसृप होती है। यह प्रामी विलुप्त प्राय हो चुका है। यह पशु दिखने में भले ही डरावना लगे। असल में बहुत ही सीधा साधा होता है। इसके सीधेपन का फायदा शिकारी उठाते हैं और इसका शिकार करके तेल निकालते हैं। यह शुष्क जगहों पर पाया जाता है। यह भारत के राजस्थान में ज्यादा पाया जाता है। सांडा एक शाकाहारी जीव होता है। यह बिना पानी पिए कई वर्षों तक जीवित रह सकता है।
सांडा जमीन को खोदकर उसके अंदर अपना बिल बनाता है। उसे बाद में मिट्टी से ढ़क देता है। यह जीव इतनी चालाक होता है कि बारिश आने से पहले ही बारिश के आने का अनुमान लगा लेता है। सांडे में एक खासियत होती है कि वो गर्दन कटने के बाद भी कई घंटे तक जिंदा रह सकता है। उसके पैर बहुत ही मजबूत होते हैं। सांडा मादा एक बार में 10 से 15 अंडे देती है। इनमें लेकिन कुछ ही बच पाते हैं।
शिकारी इसको पकड़ने के बाद मांस खाने के लिए अलग कर लेते हैं और इसके दोनों पैरों को अलग कर लेते हैं। उनमें से वसा की थैली से तेल निकाल लेते हैं। ऐसा लोगों का मानना है कि इसके अंडे खाने से भी मर्दाना ताकत आती है। शिकारी जंगल में इनके अंडे तक नहीं छोड़ते हैं। सांडा लेकिन एक बहुत ही भोला पशु होता है। वह इंसान के लालच का शिकार हो रहा है।
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