Mini Africa in India: भारत में यहां बसा है मिनी अफ्रीका, जानिए इनका 750 साल पुराना इतिहास

Mini Africa in India: भारत में अलग – अलग जातियों, धर्मों के लोग रहते हैं। इन जातियों की अलग – अलग वेशभूषा और भाषा होती है। इसी वजह से भारत को अनेकता से एकता वाले देश की श्रेणी में रखा गया है। हमारे देश में काले रंग के लोग और गोरे रंग के लोग भी बिना किसी भेदभाव के रहते हैं। ऐसे में अगर हम कहें की भारत में भी 750 साल पहले से अफ्रीकी देश के लोग आकर रहते हैं तो शायद आप विश्वास नहीं करेंगे। भारत में एक ऐसी जगह है जहां 750 साल पहले से सिद्दी समुदाय के लोग रहते हैं जिनकी वेशभूषा, रूप रंग बिल्कुल ही आफ्रिकन की तरह ही है। ऐसे में आइए उस जगह के बारे में जानते हैं जिसे मिनी अफ्रीका कहा जाता है।

यहां पर स्थित है मिनी अमेरिका

भारत के मिनी अफ्रीका के बारे में बताया जाता है कि यह गुजरात राज्य में स्थित है। गुजरात से कुछ ही दूरी पर जंबूर गांव है जहां यह अफ्रीकी समुदाय के लोग रहते हैं। बताया जाता है कि यह सिद्दी जनजाति के लोग इस्लाम धर्म को ही मानते हैं। वहीं कुछ लोग हैं जो हिंदू और ईसाई धर्म को ही मानते हैं। यह अफ्रीकी समुदाय के लोग बंनतु समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। यह समुदाय के लोग दक्षिणी अफ्रीका में ज्यादा देखे जाते हैं।

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आखिर कैसे आए यह लोग भारत

सिद्दी समुदाय के लोगों की भारत आने की कहानी भी बड़ी मजेदार है। इनके बारे में बताया जाता है कि यह समुदाय गुलाम बनकर पुर्तगालियों के साथ में आए थे। वहीं यह भी बताया जाता है कि यहां व्यापार करने के लिए आने वाले लोग भी अफ्रीकी गुलामों को अपने साथ में लेकर आते थे। कुछ व्यापारी ऐसे थे जिन्होंने इन अफ्रीकियों को भारत में ही छोड़ दिया गया। उस समय के राजा महाराजा इन मजदूरों से अपने राज्य में मजदूरी करवाते थे।

वहीं इसके बारे में एक कहानी और भी ज्यादा प्रचलित है। इस कहानी के बारे जानकार लोग बताते हैं कि 750 साल पहले जूनागढ़ के राजकुमार अफ्रीका के दौरे पर गए हुए थे। इस दौरे के समय उनकी मुलाकात एक अफ्रीकी महिला से हुई और उन्हें उससे प्यार हो गया। ऐसे में जब वह भारत आने लगे तो उस महिला को साथ ही उसकी साथ में अफ्रीका से 100 गुलामों को भी अपने साथ लेकर आए। तभी से यह समुदाय यही पर बसा हुआ है।

यह है इन समुदाय के लोगों का रहन – सहन

जंबूर गांव में रहने वाले यह अफ्रीकी लोग बड़े ही दयनीय स्थिति में रहते हैं। सरकार की तरफ से अभी भी इन मजदूरों को यहां की नागरिकता नहीं प्रदान की गई है। इसके साथ ही अभी भी इन लोगों के पास अपना खुदका घर नहीं है। यह लोग भी कच्चे मकानों में रहते हैं। अपने परिवार के जीवन को चलाने के लिए यह लोग देश के अलग -अलग राज्यों में जाकर मजदूरी करते हैं। गुजरात में काफी समय से रहने के कारण इनकी भाषा भी गुजराती है।

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