Labour day: 1 मई को दुनिया भर में क्यों मनाया जाता है मजदूर दिवस.. क्या है इसके पीछे की खास वज़ह

Labour day:1 मई को सारी दुनिया मजदूर दिवस के रूप में मनाती है। दुनिया के सबसे बड़े और शक्तिशाली नेता लेनिन का कहना था ” मजदूर की जाति नहीं होती, मजदूर अपने आप में एक जाति है और यह जाति दुनिया की सबसे बड़ी जाती होती है। ऐसा कोई देश, ऐसा कोई शहर, ऐसी कई जगह दुनिया की नहीं है, जहां इंसान रहते हों और मजदूर जाति नहीं पायी जाती हो”।आज उसी जाति का दिन है। इस दिन को मनाने इसी दिन क्यों मनाया जाता है। उसका भी एक साहसी और रोचक इतिहास है।

मजदूर दिवस क्यों मनाया जाता है।

आज मजदूरों के लिए हर देश में क़ानून हैं। उनके लिए सरकार अलग से बिल भी लाती है। एक समय लेकिन ऐसा था कि मजदूरों के लिए कोई खास क़ानून नहीं थे। मजदूरों के काम करने का कोआ समय निर्धारित नहीं था। किसी भी फैक्ट्री में मजदूर तब तक काम करते थे जब तक की काम ख़त्म नहीं हो जाता था। मजदूरों के
जीवन में कुछ भी घटे मालिक को को उस से को लेना देना नहीं था।

यह बात अमेरिका के शहर शिकागो की है। साल 1886 में मजदूरों के अंदर तपता हुआ लावा जब ज्वालामुखी की तरह धुआं देने लगा। मजदूर मालिकों के खिलाफ सड़कों पर उतर आये। उन्होंने अपने काम घंटे और अपने साथ होने वाले अन्याय और किसी बी फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के लिए क़ानून की मांग कर दी।


उस समय उन्हें 15-15 घंटे काम करना पड़ता था। यह मजदूरों का आंदोलन बढ़ता ही चला गया। मजदूर सड़कों पर उतर आये। सरकार ने मजदूरों के खिलाफ पुलिस का इस्तेमाल किया और गोलीबारी में कई मजदूरों की जान चली गई। उसमें 4 मजदूरों की जान चली गई। इस बात से मजदूरों के आंदोलन को और भी ज्यादा हवा मिल गई। आंदोलन बढ़ता ही चला गया।इस आंदोलन की गूंज बाकी जगहों पर भी सुनाई देने लगी।

इस घटना का असर उसी समय तो नहीं हुआ लेकिन तीन साल बाद 1889 मे अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की बैठक हुई। इस बैठक में कुछ महत्वपूर्ण फैंसले मजदूरों के लिए लिए गये। उसमें सबसे अहम फैंसला था कि मजदूर के काम करने का समय निर्धारित किया गया। उस दिन के बाद मजदूरों को सिर्फ 8 घंटे काम करने का अधिकार मिला। उसी दिन सप्ताह में एक दिन छुट्टी देने का अधिकार मजूदरों को मिला। इस अधिकार की मांग दुनिया भर के मजदूर करने लगे। दुनिया की सरकारों को मजदूर के लिए यह क़ानून बनाना ही पड़ा। इसलिए 1 मई को गर्व के तौर पर मजदूर दिवस बनाने के फैंसला लिया गया। इस साल मजदूरों को छुट्टी देने का भी फैसला लिया गया।

हालांकि भारत में इस दिन को मनाने की शुरूवात करीब 34 साल बाद हुई थी। यह साल 1923 था। दुनिया भर में मजदूर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे। यह लड़ाई भारत में भी जारी थी। इस लड़ाई को भारत में कई सोशल पार्टी लड़ रही थीं। उस समय लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने चेन्नई में 1 मई 1923 को पहली बार मजदूर दिवस मनाने का फैसला किया। उस दिन से भारत में भी बाकी दुनिया के साथ इस दिन को मनाने की शुरूवात हुई।

मजदूरो की हालत में कितना सुधार हुआ

भारत के समाजवादी नेता लोहिया का कहना था ” बंधुवा मजदूर किसी भी विकसित समाज के लिए अभिशाप है” बंधुवा मजदूरी के खिलाफ दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं ने आवाज को बुलंद किया है। उसमें मार्टिन लूथर किंग हो, लेनिन हों या फिर इंडिया में लोहिया और वामपंथी नेता हों। उसके बाद भी बंधुआ मजदूरी के आंकड़े अगर हम देखें तो बहुत ही चोंकाने वाले हैं। गुडवीव इंटरनेशनल नाम की एक संस्था के साल 2020 के सर्वे के मुताबिक महामारी की वजह से मजदूरों के कर्ज़ में फंसने का जोख़िम तीन गुना बढ़ गया है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार साल 2016 में दुनिया भर में 4 करोड़ से ज़्यादा लोग बंधुआ मज़दूरी का शिकार थे. इसमें भी महिला मजदूरों की हालत और ज्यादा खराब है। भारत में श्रम से होने वाली कमाई का सिर्फ 18 प्रतिशत हिस्सा ही महिलाओं के हाथ आता है। आईएलओ की साल 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में बाल मज़दूरों की तादाद बढ़कर 16 करोड़ हो गई है.

मजदूरों के लिए क़ानून क्या कहता है?

दुनिया के देशों में मजदूरों के लिए क़ानून बनाये गये हैं। हर देश के क़ानून अलग हैं। भारत में मजदूरों के लिए क़ानून क्या कहता है। में मजदूरों के लेकर संविधान में बहुत से क़ानून बने हैं। उसके बाद भी कई बार क़ानूनों में संसोधन किया गया है। इन क़ानूनों के मुताबिक किसी भी मजदूर को बंधुवा तौर पर मजदूर के लिए आधुनिक गुलाम नहीं बनाया जा सकता है। किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चे को मजदूरी के लिए उकसाया, या जबरन मजदूरी यानि किसी भी तरह से मजदूरी नहीं करायी जा सकती है। महलिओं को अलग से बाथरूम की सुविधा अगर उनके साथ छ साल से कम उम्र के बच्चे हैं तो उनके लिए इंतजाम करना होगा। हर फैक्ट्री में खाने के लिए अलग से जगह देनी होगी।

इस तरह के और भी बहुत क़ानून मजदूरों के लिए बने हैं। इन क़ानूनों का पालन कितना होता है। यह बात लेकिन पूरी तरह से अलग है।

 

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