History: झांसी की लड़ाई से पहले अदालत में भी लड़ा गया था, झांसी की रियासत का केस

History: झांसी की रानी और अंग्रेजों के बीच 23 मार्च 1858 को एक भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में झांसी की रानी की हार हुई और झांसी पर अंग्रजों ने अपना कब्जा जमा लिया था। यह युद्ध ना हो, झांसी अंग्रेजों के पास ना जाये। इसके लिए झांसी की रानी ने कई प्रयास भी किए थे। रानी लक्ष्मीबाई ने साल 1854 में ऑस्ट्रेलिया के वकील जॉन लैंग को नियुक्त किया ताकि वो झांसी के अधिग्रहण के ख़िलाफ़ ईस्ट इंडिया कंपनी के समक्ष याचिका दाखिल करें। जॉन लैंग उस समय मेरठ शहर में रहा करते थे। जॉन क्योंकि एक लेखक भी भी थे जिन्होंने झांसी की अपनी यात्रा और रानी लक्ष्मीबाई से मुलाकात पर एक किताब लिखी जो 1861 में प्रकाशित हुई थी।

रानी लक्ष्मीबाई क्या चाहती थीं

जॉन ने अपनी किताब में लिखा कि झांसी का राजस्व उस जमाने में 6 लाख रुपये था। सरकारी खर्चे और राजा की सेना पर खर्च होने के बाद ढ़ाई लाख रूपये बच जाते थे। उस समय सैनिकों की संख्या भी बहुत ही कम रह गई थी। झांसी के राज्य में कुल एक हजार सैनिक थे। उनमें भी ज्यादातर सस्ते घुडसवार थे। झांसी के राजा के संतान नहीं थी। अंग्रेजी सरकार का फरमान था किसी गोद लिए बच्चे को राजा की गद्दी नहीं दी जा सकती है। झांसी के राजा ने अंग्रेजों के नियमों से और उनकी देख रेख में ही एक बच्चा गोद लिया। राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने जिसे उत्ताराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने रानी लक्ष्मी बाई को झांसी को अंग्रेजी शासन में मिलाने का प्रस्ताव दिया। उसमें उन्हें सिर्फ साठ हजार रूपये सालाना की पेंसन मिलनी थी।

रानी लक्ष्मी बाई ने ऑस्ट्रेलिया के वकील जॉन को इसीलिए मेरठ से झांसी बुलवाया था ताकि अंग्रेजों की तरफ से जारी हुए आदेश को या तो वापस लिया जाने या निरस्त किए जाने की संभावना को तलाशा जा सके।

वकील ने रानी के बारे में क्या लिखा?

ऑस्ट्रेलिया के वकील जॉन गर्वनर जनरल के एजेंट रह चुके थे। इसलिए ब्रिटिश क़ानूनों की उन्हें गहरी समझ थी। झांसी की रानी पहले वो ऐसा ही एक और केस लड़ चुके थे जिसमें उन्होंने किसी की रियासत को अंग्रेजों से बचा लिया था। झांसी की रानी को इसलिए जॉन पर बहुत भरोसा था। जॉल लेकिन उस केस को हार गये थे।

जॉन झांसी की रानी से मिलने वाले इकलोते अंग्रेज थे जिन्होंने झांसी की रानी से मिलने के बाद अपनी किताब में उनके बारे में लिखा था। उनका चेहरा गोल था। कद दर्मियानी था। शरीर थोड़ा सा भारी पर बहुत ज्यादा नहीं था। आवाज में एक कर्कस थी। साधारण कपड़े थे। शरीर पर सिर्फ कानों की बाली को छोड़कर कोई गहना नहीं था। उनका रंग बहुत ही साफ था।

केस हार जाने के बाद क्या हुआ?

जॉन ने एक जगह लिखा है कि उन्होंने झांसी की रानी की इस पर सलाह भी दी थी कि वो गवर्नर बिना ब्रिटिश सरकार के कुछ फैसला नहीं बदल सकता। झांसी का राज्य लौटा देना उसके हाथ से बाहर की बात है। उन्हें 60 हजार पेंशन ले लेनी चाहिए। इस पर झांसी की रानी ने उनसे जवाब में कहा था कि वो अपनी झांसी किसी भी कीमत पर अंग्रेजों को नहीं देगी। इसी बीच 1857 का गदर शुरू हो गया और 17 जून 1858 को अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मी बाई शहीद हो गईं। उसी लड़ाई में वो शहीद भी हो गई। उनके शहीद होने के कई साल बाद जॉन लैंग ने मसूरी में आकर एक किताब लिखी।

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