History: आज आधुनिक हथियारों का दौर है। आज कई सौ किलोमीटर दूर तक मार करने वाली मिसाइल छोटे से छोटे देश के पास मिल जायेंगी। जरा सोचो अब से 400 साल पहले जब मुगलों का दौर था। उनके पास एक ऐसी तोप थी जो उस जमाने में पचास किलोमीटर दूर तक गोला मारती थी। उस तोप को धुनधुनि तोप का नाम दिया गया था। वह तोप उस जमाने में मुगलों के लिए मिसाइल का काम करती थी। उस तोप के नाम से भी अंग्रेज कांपते थे।
अंग्रेजों के हाथ कैसे लगी तोप
मुगलों के बादशाह ओरंगजेब के बाद मुगलों को चढता सूरज धीरे-धीरे ढ़लने लगा था। सन 1785 में मराठों ने मुगलों से आगरा का किला जीत लिया था। बहुत दिनों तक मराठे आगरा के किले को नहीं रख पाये। अंग्रेजो ने यानी ईस्ट इंडिया कंपनी ने 22 अक्टूबर 1803 में मराठों को हराकर उनसे किला जीत लिया। उसी किले में जो माल बरामद हुआ था जिसकी लिस्ट लार्ड वेलेजी को भेजी गई। उसमें यह धुनधुनि तोप भी शामिल थी।
तोप की खासियत
इस तोप को मुगल धुनधुनी तो अंग्रेजों ने ग्रेट गन का नाम दिया था। इस तोप को मुगलकाल में बनाया था। तोप में सोने चांदी से लेकर कॉपर और टिन 9:1 के अनुपात से लगाया गया था। इस तोप की लम्बाई 15 फिट थी और गोलाई करीब पांच फिट थी। इसका कुल वजन 55 टन था। इसमें एक साथ 150 किलों गोला बारूद छोड़ी जा सकती थी। ऐसा कहा जाता है कि इस तोप से उस जमाने में आगरा के किले फतेहपुर सीकरी तक गोला फैंका जा सकता था।
अंग्रेजों ने तोप का क्या किया
साल 1828 से 1835 तक गर्नवर जनरल रहे लार्ड विलियम बैंटिक को लंदन से खर्चे कम करने का आदेश मिला तो उसने भारत में ऐतिहासिक चीजें बेचने का फैसला किया। उसने आगरा के ताजमहल को ही बेचने का फैसला कर लिया। उसके लिए फरमान भी जारी हो गया लेकिन किसी तरह से वो बिक नहीं सका। आगरा के पास जमाना किनारे पड़ी इस तोप को लार्ड विलियम ने टुटवा कर जमना किनारे पर लोहे का पुल बनवा दिया। उस तोप की धातु का बना पुल आज भी मौजूद है।
आगरा का किला जीतने के बाद जनरल लेक इसे इंग्लैंड के प्रिंस रीजेंट यानी जार्ज फोर्थ को देना चाहता था। उसने बहुत कोशिश की इसे लंदन ले जाने की उसमे वजन इतना था कि बहुत कोशिशों के बाद भी वो उसे आगरा के लाल किला से दिल्ली गेट तक ही ला पाया था। उसके बाद बहुत दिनों तक तोप वहीं पडी रही थी।
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