General Knowledge: भारत में अगर नहीं बनता जीरो तो दुनिया में कभी नहीं बन पातीं ये चीजें

General Knowledge: शून्य कुछ भी नहीं या कुछ नहीं होने की अवधारणा का प्रतीक है। इंसान की ज़िंदगी में एक का महत्व सिर्फ इतना ही नहीं है कि जीरो देखकर वो नोट का पता लगा सकता है। जीरो कैमिस्ट्री से लेकर गणित फिजिक्स में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कंप्यूटर जिन दो बाइनरी से चलता है। उन दोनों में से एक जीरो है। इस जीरो की जरूरत भारत में ही महसूस की गई। इस जीरो का जन्म ही भारत में हुआ था। कब हुआ आईये जानते हैं।

शून्य की खोज कब हुई

भारत में शून्य की कोज पांचवीं शताब्दी में हुई थी। इस शून्य का जिक्र बख्शाली पांण्डुलिपी में था। इसी बख्शाली पांण्डुलिपी से सिद्ध होता है कि शून्य की खोज सबसे पहले भारत में ही हुई थी। कुछ जानकारों की माने तो सन 1881 में पेशावर जो पहले हिन्दोस्तान का ही हिस्सा था, एक किसान ने चोथीं सदी के इस दस्तावेज को खोद कर निकाला था। यह वैसे तो काफी जटिल था। यह सिर्फ एक दस्तावेज नहीं है बल्कि पूरा का पूरा एक ग्रंथ है जिस पर रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक की मदद से, जोकि आयु निर्धारित करने के लिए कार्बनिक पदार्थों में कार्बन आइसोटोप की सामग्री को मापने की एक विधि भी लिखी है। इसमें सबसे पुराना हिस्सा 224-383 ईस्वी का है, उससे नया हिस्सा 680-779 ईस्वी का है और सबसे नया हिस्सा 885- 993 ईस्वी का है। इस पांडुलिपि में सनौबर के पेड़ के 70 पत्ते और बिंदु के रूप में सैकड़ों शून्य को दिखाया गया है।

शून्य के आविष्कार में किस-किस ने दिया योगदान

शून्य को सबसे पहले 628 ईस्वी में ब्रह्मगुप्त नामक विद्वान और गणितज्ञ ने पहली बार शून्य और उसके सिद्धांतों को परिभाषित किया और इसके लिए एक प्रतीक विकसित किया जो कि संख्याओं के नीचे दिए गए एक डॉट के रूप में था। उन्होंने गणितीय संक्रियाओं अर्थात जोड़ और घटाव के लिए शून्य के प्रयोग से संबंधित नियम भी लिखे हैं. इसके बाद महान गणितज्ञ और खगोलविद आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली में शून्य का इस्तेमाल किया था।

इस से पहले कुछ प्राचीन संस्कृति में लोग शून्य को अलग तरह से इस्तेमाल करते थे। कुछ और प्राचीन संस्कृतियां हैं जोकि शून्य को स्थान निर्धारक अंक के रूप में इस्तेमाल करती थी जैसे- कि बेबीलोन के लोग शून्य को दो पत्ते के रूप में इस्तेमाल करते थे, माया संस्कृति के लोगों इसे शैल की संख्या के रूप में इस्तेमाल करते थे। इस विषय पर हुए शोध में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार, भारत में ग्वालियर में नौवीं शताब्दी के एक मंदिर के शिलालेख में वर्णित शून्य को सबसे पुराने रिकॉर्ड के रूप में माना जाता है।

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