FACT: वह लोग जो बोल नही सकते, वह लोग जो सुन नहीं सकते। ऐसा नहीं है कि समझ भी नहीं सकते हैं। वह भी सोचते हैं। उनकी सोचने समझने की शक्ति नॉर्मल लोगों से भी ज्यादा बताई जाती है। हम बिना बोले सिर्फ स्पर्ष से और देखकर बहुत सी चीजों को समझ लेते हैं। उसी तरह दिव्यांग भी बिना बोले सिर्फ स्पर्ष से ही अनुभव करते हैं। उनका अनुभव लेकिन हमारे अनुभव से बिल्कुल ही अलग होता है।
जो सुन नहीं सकते कैसे सोचते हैं
ऐसे बहुत से कलाकार है जो बिना बोले ही एक्ट करके पूरी की पूरी कहानी दर्शक को समझा देते हैं। उसी से वो किसी को हंसा भी देते हैं। रूला भी देते हैं। उसका एक सबसे बेहतरीन उदहारण चार्ली चेपलिन है। उसके अलावा भी बहुत सी फ़िल्में हैं जिनमें आवाज नहीं थी। ऐसा एक दो साल नहीं बल्कि बीस साल से ज्यादा लोगों ने बिना बोलती फ़िल्में देखी थीं। उसमें वो सिर्फ तस्वीरों के जरिए ही कहानी की अंदाजा लगाते थे। इसी तरह से जो लोग सुन नहीं सकते वो जो तस्वीरे उनके सामने होती हैं। उसी अंदाजा लगाते हैं। उसी से लोगों को समझते हैं। उनके एक्प्रेशन देखकर ही उनका स्वाभाव का अंदाजा लगाते हैं। उनकी सारी की सारी कहानी उसी से चलती है जो वो लोग देखते हैं।
दिव्यांग लोगों की स्मरण शक्ति क्या नॉर्मल लोगों से तेज होती है?
कुछ वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि यह दिव्यांग लोगों की स्मरण शक्ति इसलिए बाकी लोगों से ज्यादा होती है क्योंकि यह लोगो बाकी लोगों के मुकाबले दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। हम जिन तीजों को आंखों से देखकर या सुनकर सेकेंड के सोवें हिस्से में समझ जाते हैं। यह लोग उसे महसूस करके समझते हैं। उस पर इनका दिमाग हमसे ज्यादा लगता है। इसलिए उनकी स्मरण शक्ति हमसे ज्यादा होती है। यह बात मेंटल फलॉस ीक एक खबर से भी साबित होती है जिसमें 15 साल का एक बच्चा जो सुन नहीं सकता था। उसने जब साइन लेंग्वेज सीखी तो अपनी साइन भाषा में में उसने अपने 7-8 साल के अनुभवों को भी शेयर किया। उसने बताया कि बचपन में वो सोचता था कि चांद उस पर हमला करेगा और उसके पिता इतने शक्तिशाली हैं कि उसे चांद से बचा लेंगे।
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