Big Bridges Over Water: समंदर और नदियों के गहरे पानी पर इस खास तकनीक के जरिए बनाए जाते हैं विशालकाय ब्रिज, जानिए तरीका

Big Bridges Over Water

Big Bridges Over Water: आपने अक्सर देश और विदेश में कई बड़े पुलों को देखा होगा। ऐसे में आपने कभी सोचा है कि जिस आलीशान पुल से आप गुजर रहे हैं, वो विशालकाय पुल आखिर बनता कैसे है। अगर आप इस बारे में अभी तक नहीं जानते हैं तो आप इस आर्टिकल का सहारा ले सकते हैं। जानिए कैसे समंदर और नदियों के बीच में एक बड़े पुल को बड़े ही आसानी से इंजीनियर बना देते हैं।

पुल बनाने से पहले इनकी होती है रिसर्च

आपने कई बार सफर के दौरान ऐसे पुल देखें होंगे, जिनके पिलर्स देखने में काफी गहरे लगते हैं। इनको बनाने के लिए इंजीनियर्स को काफी जीतोड़ मेहनत के सथ ही एक अच्छी तकनीक को भी समझने की जरूरत होती है। इन बड़े पिलर्स को खड़ा करने के लिए कई तरह की चीजों के बारे में रिसर्च करनी होती है।

इसमें पानी के बहाव की रफ्तार, समंदर के अंदर मिट्टी का प्रकार, पुल का कुल भार और उस पुल पर चलने वाले वाहनों का वजन भी इन सबमें काफी मायने रखता है। इसके अलावा पुल बनाने के लिए पानी की गहराई भी एक जरूरी विषय होता है। यहां पर आपको बता दें कि समंदर और गहरी नदियों पर अक्सर 3 तरह के पुल बनाएं जाते हैं। इसमें बीम पुल, संस्पेंशन पुल और आर्क पुल शामिल है।

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नींव पर होता है सबसे पहले काम

आपको बता दें कि समंदर और नदियों में गहरे पुल बनाने के लिए सबसे पहले उसकी नींव पर काम होता है। इसके लिए पुल बनने वाली जगह से दूर किसी अलग लोकेशन पर उसका प्री-कॉस्ट तैयार किया जाता है।

कैसे डाला जाता है कॉफरडैम

समंदर और नदियों में गहरे और बड़े पुलों के निर्माण के लिए सबसे पहले कॉफरडैम को तैयार किया जाता है। आपको बता दें कि कॉफरडैम एक स्टील से बनी हुई प्लेट होती है। इस कॉफरडैम को पिलर बनाने वाली जगह पर डाला जाता है, ताकि आसपास पानी के बहाव को रोका जा सकें। ये एक तरह से गोल आकार में और कभी-कभी चौकोर आकार में डाली जाती है। इसके बाद कॉफरडैम के अंदर ही पिलर खड़ा करने का काम किया जाता है। कॉफरडैम का साइज, पुल की लंबाई, चौड़ाई और वजन पर निर्भर करती है।

कैसे काम करता है कॉफरडैम

कॉफरडैम के अंदर जो पानी रहता है, उसे छोटे पाइपों से कॉफरडैम के बाहर निकाला जाता है। इसके बाद कॉफरडैम के अंदर सीमेंट और बार्स डाले जाते हैं। इसके बाद दूसरी साइट पर बनाए गए प्री-कास्ट स्लैब को उसमें डाला जाता है। स्लैब को सेट करने के बाद पिलर का काम पूरा हो जाता है।

पानी अधिक गहरा होने पर इस तकनीक का होता है इस्तेमाल

आपको बता दें कि पानी के अधिक गहरा होने पर कॉफरडैम का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। समंदर और नदियों की सतह पर जाकर कुछ बारीक पाइंट तय किए जाते हैं। इसके बाद उन पाइंट्स की मिट्ट् कैसी है, इसकी भी जांच होती है। इसके बाद निर्धारित किए पाइंट्स में गहरे गड्ढे किए जाते हैं। अगर सब कुछ सही रहता है तो उस जगह पर पाइप डालकर उसे तल से ऊपर लाया जाता है। इसके बाद उन पाइप्स में सीमेंट, कंक्रीट और स्टील के बार्स को डाला जाता है। इसके बाद अंत में पहले से तैयार स्लैब को उनके साथ ही सेट कर दिया जाता है।

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