Sadhvi Story: अक्सर ऐसा सुना जाता है कि शिक्षा के क्षेत्र में उच्च डिग्री प्राप्त करने के बाद लोग किसी प्रसिद्ध संस्थान के साथ काम करते हैं। बदले में उन्हें मोटी सैलरी मिलती है। इसके अलावा उनका कद भी संस्थान के साथ समाज में बढ़ता है। लेकिन, इस सबके बीच कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी किसी प्रसिद्ध संस्थान में काम करने के बजाय वो ऐसे मार्ग का चयन करते हैं, जिसे जानकर आप प्रशंसा करेंगे। ये लेख एक ऐसी साध्वी की जीवन यात्रा पर आधारित है, जिन्होंने दुनिया की तमाम सुख सुविधा का त्याग कर आज के समय में कई Social Organizations से जुड़कर मानव सेवा का कार्य करती हैं। मीडिया रिपोर्टस की मानें तो वह 50 देशों में लोगों को आध्यात्मिक योग, प्राणायाम, ध्यान, जीवन जीने की कला आदि के संबंध में जानकारी देती हैं।
साध्वी भगवती सरस्वती की जीवन यात्रा
साध्वी भगवती सरस्वती के नाम से अब उनको दुनिया पहचान रही हैं। कहानी की शुरुआत साल 1995-1996 से होती है। अमेरिका की एक लड़की कैलिफोर्निया के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) से पीएचडी की पढाई कर रही थी। बताया जाता है कि बचपन से ही वे स्वभाव से चंचल, लेकिन आचार विचार से बहुत ही शालीन थी। अलग- अलग मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि साध्वी भगवती सरस्वती जन्म से ही शाकाहारी थी। खान पान और उसकी सहजता को लेकर अक्सर उन्हें घर से बाहर तक लोगों के ताने सुनने को मिलते थे। साध्वी भगवती सरस्वती की स्वभाव और विचार को देखते हुए अमेरिका में लोग उन्हें कहते थे कि ‘तुझे तो इंडिया में होना चाहिए था।’ आगे चलकर हुआ भी कुछ ऐसा। अक्सर बड़े बुजुर्गों के द्वारा कहा जाता है कि जो नियति को मंजूर हो, उसे कोई नहीं रोक नहीं सकता।
अमेरिका से आयी एक साध्वी की पूरी कहानी
हुआ ऐसा कि Sadhvi Bhagwati Saraswati बचपन में ही कई देशों को घुमने निकलीं। इसी दौरान उनकी शाकाहारी भोजन की लत ने भारत की ओर आने पर प्रेरित किया। वे भारत आईं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि वह शाकाहारी भोजन की तलाश में सीधे भारत पहुंची। हां, ये जानना जरुरी है कि अब तक उन्हें धर्म आध्यात्म से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। इन दिनों इंटरनेट का बोलबाला है, लेकिन उस समय में किताब और गाइड के सहारे ही यात्रा संभव था। साध्वी भगवती सरस्वती ने भी इंडिया के प्रमुख जगहों को जानने व समझने के लिए एक बुक “लोनली प्लैनेट” देखा। जानकारी के लिए बता दें कि तब इस किताब का उपयोग सभी देशों में एक गाइड बुक के तौर पर किया जाता था। उनके द्वारा कही गई बातों पर ध्यान आकर्षित करें तो जैसे ही उन्होंने यह किताब खोला तो सबसे पहले पृष्ठ पर ऋषिकेश का नाम लिखा था। फिर क्या था वह ऋषिकेश आ गईं। यहां आकर वो एक होटल में रुकीं और गंगा में नहाते, उसके जल को सर आंखों से लगाते और पूजा पाठ करते लोगों को देखना शुरु किया। मंदिरों में पूजा पाठ की ध्वनी उन्हें आकर्षित करने लगी, तो उन्होंने गंगा और आध्यात्म को जानने समझने के लिए परमार्थ निकेतन आश्रम (Parmarth Niketan Ashram) गईं। आश्रम में उनका मन लगने लगा। कुछ दिनों के बाद उनकी मुलाकात गुरूजी संत चिदानंद मुनि से हुई। गुरुजी की अनुमति से वह अब आश्रम में रहने लगीं। उनका मन अब आध्यात्म में कहीं ज्यादा रमने लगा। इसी बीच गुरूजी ने साध्वी को अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए अमेरिका भेज दिया और उन्होंने PHD की पढ़ाई भी पूरी कर ली। साध्वी की मानें तो जब वह वापस अपने घर गईं और उसने ऋषिकेश में गंगा के किनारे आश्रम में जीवन बीताने का अपना निर्णय परिवार के लोगों को सुनाया, तो घर में कोई सहमति देने के पक्ष में नहीं थे। बताया जाता है कि साध्वी के एडवोकेट पिता और मां की इकलौती संतान को आध्यात्म की राह पर भेजने को कोई मन नहीं था। लेकिन, अचानक से Guruji Sant Chidanand Muni को अमेरिका जाना हुआ और उनकी मुलाकात साध्वी की परिजनों से हुई और इसके बाद वह पूरी तरह आश्वस्त हो गए तो उन्होंने आश्रम जीवन अपनाने पर साध्वी को सहमति दे दी। ये जानकर आपको आश्चर्य़ होगा कि 25 सालों से भारत में रह रहीं साध्वी भगवती सरस्वती हिंदी में बात करती हैं। आध्यात्मिक जीवन यात्रा पर साध्वी कहती हैं कि ये सभी मां गंगा की कृपा से संभव हुआ।
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